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16 Oct 2016 · 1 min read

आशाओं की कस्तूरी...

1.
कोसते रहे
समूची सभ्यता को
बेचारे भ्रूण

2.
दौड़ाती रही
आशाओं की कस्तूरी
जीवन भर

3.
नयी भोर ने
फडफढ़ाये पंख
जागीं आशाएं

4.
प्रेम देकर
उसने पिला दिए
अमृत घूँट

5.
थका किसान
उतर आई साँझ
सहारा देने
– त्रिलोक सिंह ठकुरेला

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