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9 Oct 2016 · 1 min read

सावन

शिर्षक=सावन

मुझको भी कुछ अब कहने दो।
ये जो सावन है इसे रहने दो।
बरखा सा मैं भी तो बरसा था।
उनके भी सितम अब सहने दो।

सावन ने ये कैसी कहर ढाई।
संग अपने वो पूर्वा ले आई।
आती वो अकेले तो ठीक मगर।
उनकी यादें संग ले आई।

बिन सावन बरसात पुरानी हुई।
कातिल अब उनकी जवानी हुई।
बैठ झूलो पर इजहार किया।
प्यार उनका सावन की निशानी हुई।

पल याद पुराना आता है।
सावन जब सुहाना आता है।
घर देर से जब जाने पर।
याद उसका बहाना आता है।
अभिषेक भारती”चंदन”

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