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15 Aug 2016 · 1 min read

हमसफर ! आफताब था उसका

“ज़ह्न तो लाजवाब था उसका
दिन ही शायद ख़राब था उसका

जबकि मेरा सवाल सीधा था
फ़िर भी उलटा जवाब था उसका

वो महज़ धूप का मुसाफिर था
हमसफर ! आफताब था उसका

आँख जैसे कोई समंदर हो
और लहजा शराब था उसका

मुतमईन था वो ज़ात से अपनी
खुद ही वो इंतेखाब था उसका

नासिर राव

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