Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Dashboard
Account
30 Jul 2016 · 1 min read

कुछ गीला लिखा नहीं है

कागज़ पर कुछ गीला लिखा नहीं है।
शायद कोई दर्द नया मिला नहीं है।

स्याही भी बिखर जाती थी शब्दों की
पर ज़ख्म कभी हमने वो सिला नहीं है।

मन के किसी कौने में है जमा वो शब्द
जिनसे ऐ ज़िन्दगी अब कोई गिला नहीं है।

तब भी मुस्कुरा के झेला था अब भी झेलेंगे
तुम्हारी बातों का असर कब दिखा नहीं है।।।
कामनी गुप्ता ***

Loading...