Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
30 Jul 2016 · 1 min read

मगर जाता है

क्यूँ बताता है नहीं दोस्त किधर जाता है
और जाता है तो किस यार के घर जाता है

पास आ मेरे सनम जा न कहीं आज की रात
या मुझे लेके चले साथ, जिधर जाता है

तू जो आ जाये है पल को ही तसव्वुर में सही
साँस रुक जाती है और वक़्त ठहर जाता है

हूक उट्ठे है वो शब वस्ल की याद आए है जब
एक ख़ंजर सा कलेजे में उतर जाता है

मैंने रोका तो बहुत तेरी तरफ़ जाने से
जी कहा भी के न जाऊँगा मगर जाता है

राज़ तो फ़ाश हो जाएगा ज़फ़ाई का तेरा
अब जनाज़े से मेरे उठके अगर जाता है

छोड़कर जाम मेरी मस्त नज़र का ग़ाफ़िल
आजकल दर से मेरे यूँ ही गुज़र जाता है

-‘ग़ाफ़िल’

Loading...