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23 May 2016 · 1 min read

दो मुक्तक --आँख से बहते समन्दर ...

आँख से बहते समंदर की रवानी है बहुत
प्यास फिर भी बुझ न पायी खारा पानी है बहुत
पास जाकर भी परखना जानना भी सत्य को
दूर से हर शय यहाँ लगती सुहानी है बहुत

बस राग ही अपने हमें गाने नहीं आते
सीने में छिपे जख्म दिखाने नहीं आते
पीने पड़े हैं दर्द ये सब इसलिये दिल को
आँखों से जो ये दर्द बहाने नहीं आते

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद (उ प्र)

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