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28 Jul 2016 · 1 min read

मिड -डे मील ------ कविता

मिड -डे मील

पुराने फटे से टाट पर

स्कूल के पेड के नीचे

बैठे हैं कुछ गरीब बस्ती के बच्चे

कपडों के नाम पर पहने हैं

बनियान और मैली सी चड्डी

उनकी आँखों मे देखे हैं कुछ ख्वाब

कलम को पँख लगा उडने के भाव

उतर आती है मेरी आँखों मे

एक बेबसी, एक पीडा

तोडना नही चाहती

उनका ये सपना

उन्हें बताऊँ कैसे

कलम को आजकल

पँख नही लगते

लगते हैँ सिर्फ पैसे

कहाँ से लायेंगे

कैसे पढ पायेंगे

उनके हिस्से तो आयेंगी

बस मिड -डे मील की कुछ रोटियाँ

नेता खेल रहे हैं अपनी गोटियाँ

इस रोटी को खाते खाते

वो पाल लेगा अंतहीन सपने

जो कभी ना होंगे उनके अपने

फिर वो तो सारी उम्र

अनुदान की रोटी ही चाहेगा

और इस लिये नेताओं की झोली उठायेगा

काश! कि इस

देश मे हो कोई सरकार

जिसे देश के भविष्य से हो सरोकार

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