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25 Jul 2016 · 1 min read

यह सच है

सच की आदत बहुत बुरी है
बात हमसे अापसे जुडी है
ख्याव पूरे न हो सभी के
दिल में तब टीस सी उठी है

हो गंदे काम जहाँ पर
बस्तियाँ मलिन भी वहाँ पर
आप हो इस समाज के जब
देख लो शीघ्र ही कहाँ पर

वेश्यावृति यहाँ पर नित्य होती
कौमार्यता रोज धर्म है खोती
कैसी है सामाजिक विडम्बना
आत्मा को निचोड़ कर पीती

कहाँ गई है इनकी मानवता
दिखा रहे है अपनी दानवता
सदाचार की परिभाषा काम
अहं चेतना की यह संहारता

कहते जो समाज के ठेकेदार
हो रहे वहीं आज तो सौदेगार
फिर कोन बचाए नरक से इन्हें
हो गये है जव यहाँ पर पहरेदार

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