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24 Jul 2016 · 1 min read

मुक्तक

जो चरागों से रौशन दुआरे रहे
वो हमारे नहीं वो तुम्हारे रहे
जिनके चहरे पे चहरों का था आवरण
वो ज़माने में अक्सर सितारे रहे

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