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15 Jul 2016 · 1 min read

पैग़ाम

शब्द डगर का पथिक
जब भी जुड़ता है
एक और शब्दों की नई राह से
जिसमे नये चेहरे होते है
क़लम के नए तेवर भी होते है
सृजन के नए आयाम होते है
कुछ कहने के अपने अंदाज होते है
तब इस नयी महफ़िल में
कदम धरने से पहले
वो सबको सलाम करता है
और मोहब्बत का पैगाम देता है
आज मैं अपना ये फर्ज अता कर रहा हूँ
शायद क़लम से शब्दों की वफ़ा कर रहा हूँ।

आभार स्नेहिल दोस्तों।

मुलाक़ात होती रहेगी——–

संजय सनम

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