Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Dashboard
Account
14 Jul 2016 · 1 min read

गज़ल (ये कैसा परिवार)

गज़ल (ये कैसा परिवार)

मेरे जिस टुकड़े को दो पल की दूरी बहुत सताती थी
जीवन के चौथेपन में अब ,वह सात समन्दर पार हुआ

रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या व्यवहार हुआ

दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से
धर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो ब्यापार हुआ

मेरे प्यारे गुलशन को न जानें किसकी नजर लगी है
युवा को अब काम नहीं है बचपन अब बीमार हुआ

जाने कैसे ट्रेन्ड हो गए मम्मी पापा फ्रैंड हो गए
शर्म हया और लाज ना जानें आज कहाँ दो चार हुआ

ताई ताऊ , दादा दादी ,मौसा मौसी दूर हुएँ
अब हम दो और हमारे दो का ये कैसा परिवार हुआ

गज़ल (ये कैसा परिवार)
मदन मोहन सक्सेना

Loading...