Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
13 Jul 2016 · 1 min read

गज़ल ( बात अपने दिल की )

गज़ल ( बात अपने दिल की )

सोचकर हैरान हैं हम , क्या हमें अब हो गया है
चैन अब दिल को नहीं है ,नींद क्यों आती नहीं है

बादियों में भी गये हम ,शायद आ जाये सुकून
याद उनकी अब हमारे दिल से क्यों जाती नहीं है

हाल क्या है आज अपना ,कुछ खबर हमको नहीं है
देखकर मेरी ये हालत , तरस क्यों खाती नहीं है

चार पल की जिंदगी लग रही सदियों की माफ़िक
चार पल की जिंदगी क्यों बीत अब जाती नहीं है

किस तरह कह दे मदन जो बात उन तक पहुंच जाये
बात अपने दिल की क्यों अब लिखी जाती नहीं है

गज़ल ( बात अपने दिल की )
मदन मोहन सक्सेना

Loading...