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10 Jul 2016 · 1 min read

सोच समझ कर बोला कर राज़ न दिल के खोला कर

सोच समझ कर बोला कर
राज़ न दिल के खोला कर

इतनी सख़्ती ठीक नहीं
ख़ुद को थोड़ा पोला कर

सब तो एक न जैसे हैं
बोल न सबको भोला कर

दिल का हल्का भारीपन
एक नज़र में तोला कर

अंगारों की फसल उगा
बुझती राख टटोला कर

कुछ तो आग़ दिखाई दे
हर चिंगारी शोला कर

हर्फ़ हर्फ़ बारूद बना
गीत ग़ज़ल हथगोला कर

सीख कुचलना विषधर फन
मारा रोज़ सँपोला कर

राकेश दुबे “गुलशन”
10/07/2016
बरेली

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