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17 Dec 2025 · 1 min read

*अश्लीलता*

लेखक-डॉ अरुण कुमार शास्त्री -ek abodh balak – arun atript
विषय – अश्लीलता
शीर्षक – मेरी या तुम्हारी
विधा – स्वछंद अतुकांत काव्य

सामाजिक जीवन होता मर्यादाओं से बंधा हुआ।
करना होता पालन जिसका न्याय तर्क से सधा हुआ।

लेकिन चंचलता कभी – कभी,
किसी – किसी की, सीमाओं को देती तोड़।
शर्म , हया के परदे से आ जाती बाहर वो ,
रख देती सबको तोड़ मरोड़।

इंसानी जीवन होता है , कच्चे – कच्चे धागों का अनुबंध।
बंधा हुआ ही अच्छा लगता, नियमित जीवन का प्रवन्ध।

अश्लीलता के चलते मन सबका रहता खिन्न – खिन्न।
नजर ना मिलती , आँख न उठती , सम्मानित जन रहते विक्षुब्ध।

अश्लीलता मेरी या तुम्हारी निर्भर है एक छोटे से सम्मान पर ।
आदर होता जिसके अंदर वो रहता मर्यादा के अधिकार पर।

लेकिन चंचलता कभी – कभी,
किसी – किसी की, सीमाओं को देती तोड़।
शर्म , हया के परदे से आ जाती बाहर वो ,
रख देती सबको तोड़ मरोड़।

सामाजिक जीवन होता मर्यादाओं से बंधा हुआ।
करना होता पालन जिसका न्याय तर्क से सधा हुआ।

मैं भी रखूं तुम भी रखो आदर इसका सत्कार से।
रहें शालीनता से सब नर- नारी पारिवारिक वयवहार से।

जियेंगे जीवन दोनों मिल कर, जैसे प्रेमी जीते प्यार से।
ना दुःख देंगे , ना दिल दुखायेंगे इन्सान हैं इंसानियत निभाएंगे।

रह कर मर्यादा से संयम से हम सब जीत ह्रदय को जाएंगे।
मैं भी रखूं तुम भी रखो आदर इसका सत्कार से।
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