जो होते हैं जीभ के गुलाम
जो होते हैं जीभ के गुलाम,
उनमें न होता है जरा भी आत्मसम्मान।
हर वक्त इधर उधर सबके भोजनों को ताकते,
कतरा-कतरा कर अपना सम्मान हर पल खोते।
उनमें न रह जाता शेष ज्ञान,
जो होते हैं जीभ के गुलाम।
नहीं चाहिए धन-दौलत, न चाहिए उन्हें मान,
दूसरों के टुकड़ों पर जीते, लेते सबका अहसान।
न जानूँ, ये कैसे है इंसान,
जो होते हैं जीभ के गुलाम।
जैसे ही आती है उनको
स्वादिष्ट व्यंजनों की सुगंध,
फिर न रख पाते वे स्वयं पर संयम,
न आती है उन्हें फिर जरा सी भी शर्म।
न कर पाते वे सही-गलत की पहचान,
जो होते हैं जीभ के गुलाम।
भूलकर परिवार की मान-मर्यादा,
हमेशा रखते खुद को सेट।
छीन-झपट कर खाते सबका,
और भर लेते हैं अपना पेट।
करवाए परिवार का अपमान,
गर हो घर में ऐसी संतान
तो वे भी होते हैं जीभ के गुलाम।
कोई करे आग्रह तो बेशक तुम लो,
उसके प्रेम का तो थोड़ा मूल्य करो !
सीखों कि उसने देना सीखा,
कैसे प्यार सब में बांटना सीखा ..
इस तथ्य से रहते वही अनजान
जो होते हैं जीभ के गुलाम
लालची लोगों को समर्पित 🙏