#सामयिक
#सामयिक
क्यों ना उठाएं सवाल…?
आखिर कब जागेगा तंत्र हमारा..?
(प्रणय प्रभात)
देश की राजधानी दिल्ली में गौरव के प्रतीक लाल किले पर विस्फोट के बाद मीडिया चैनल रोज़ नए नए खुलासे कर रहे हैं। जांच एजेंसियां षड्यंत्र को परत दर परत स्पष्ट कर रही हैं। पता चल रहा है कि जो हुआ वो आनन फानन में हुआ। नियोजित ढंग से होता तो अत्यंत भयावह होता। जिसे हम सीरियल ब्लास्ट की त्रासदी के नाम पर रो रहे होते। पीड़ित केवल एक क्षेत्र नहीं तमाम शहर और कई इलाके होते। जो खुल कर सामने आ रहा है वो उन्माद की मंशा के हर पन्ने को खोल रहा है। समझा रहा है वो सब, जो नया नहीं है। सब वैसा ही है जैसा पहले भी एक नहीं अनेक बार हो चुका है। यह अलग बात है कि हर बार हादसे और वारदात के बाद जागने वाला हमारा सिस्टम आज भी चेतन नहीं अर्द्धचेतन स्थिति में है। सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने वाले अंदाज़ में, जो चिंताजनक है।
पड़ौस प्रायोजित टेरर टूर्नामेंट के खुलासे जो बता रहे हैं, वो साफ संकेत दे रहे हैं कि जो हुआ वो मंसूबों की तुलना में अंश मात्र था। जांच में सामने आ रहे तथ्य बता रहे हैं कि आतंकियों की तैयारी किस स्तर की थी। आरोपियों व मददगारों के मोबाइलों से निकल रहे विडियोज़ उस खेल को उजागर कर रहे हैं, जिसे “रैकी” कहा जाता है। तब सवाल यह खड़ा होता है कि आखि़र “हर वारदात की अम्मी” इस बीमारी की रोकथाम के बजाय इसे बढ़ावा क्यों दिया जा रहा है? आज के इस आलेख का केंद्र भी “रैकी” ही है। वही रेकी जो इस तरह की वारदातों का “ब्ल्यू प्रिंट” बनाने में अहम भूमिका अदा करती है। आतंकी नेटवर्क के बखिये उधड़ने के बाद पता चल रहा है कि “सफेदपोश शातिरों” की मंशा और पहुंच कहां तक थी। मोबाइलों से निकल रहे धर्म स्थलों व धार्मिक नगरों के वीडियो सरकार से ख़ुद पूछ रहे हैं कि उन्हें बनाने की अनुमति आखि़र किसने, कैसे, क्यों व किस क़ीमत पर और किस किस को दी?
सवाल न छोटा है, न साधारण और न अकारण। ख़ास कर आज के उस दौर में जब “एआई, डिज़ीटल, वर्चुअल और ऑनलाइन” के बूते सब कुछ संभव है। उस दौर में जहां कमाई के लिए “रील” बनाने की सलाह देश की नई पीढ़ी को नायक से अधिनायक तक दे रहे हैं। संक्रमण के उसी दौर में, जहां एक अदद मोबाइल के बूते सब कुछ करने का लाइसेंस हर किसी को बिना मांगे मिला हुआ है। जी हां, इसी दौर में जहां “इन्फ्लूएंजर” प्रजाति के असंख्य जीव दिन रात सारी वर्जनाओं का खुला चीरहरण करते दिख रहे हैं। लाखों फॉलोअर्स के बूते भारी वाहवाही और मोटी रक़म हासिल कर सेलिब्रेटी के स्लैब में शुमार हो चुके “इन्फ्लूएंजर्स” को रैकी का मास्टर माइंड क्यों न माना जाए, यह “यक्षप्रश्न” आज अपने जवाब की तलाश में है। विडंबना यह है कि “धर्मराज” या उनके सक्षम दरबारी न इस प्रश्न को सुनने के मूड में हैं, न उत्तर दे पाने की स्थिति में।
कमज़ोर याददाश्त वालों की बहुलता वाले हमारे देश में जिनकी स्मरण शक्ति ज़रा सी भी ठीक है, उन्हें “ज्योति मल्होत्रा” नाम की एक मोहतरमा ज़रूर याद होंगी। हां हां, वही “ज्योति” जो “अखंड” होने की स्थिति में आ चुकी थी। जिसकी “लौ” न जाने देश के किस किस हिस्से को सुलगाने, जलाने व झुलसाने वाली थी। वही “ज्योति” जिसकी भूख की बाती को तेल “नापाक पड़ोसी” के दूतों के आवास से मिलता था। अच्छा रहा कि बाती और तेल के बीच अवैध मेल का खेल संयोगवश समय रहते खुल गया। ऐसा न हुआ होता तो न जाने और कितने वीडियो सीमा पार जाकर मुसीबत का सबब बनते।
यह कोई अकेला मामला नहीं, एक मिसाल भर है। “हनी ट्रैप” के नाम पर ऐसे बेशर्म खेल के गवाह भी हम पिछ्ले कुछ सालों से बन ही रहे हैं। “सबका मालिक एक” की तर्ज पर “सबका मक़सद बस एक।” देश की गोपनीय व सामरिक सूचनाओं का हर संभव तरीके से “तड़ीपार” होना। एक एक लोकेशन का राज़ दुश्मन देश व उसके गुर्गों तक पहुंचना। विभीषण की तरह इस टास्क के जिम्मेदार हमारे अपने स्वदेशी सांड, जो सब कुछ चर जाने के लिए स्वछंद हैं। इस हरे भरे अभ्यारण्य में, जो त्रेता युग में भी एक “दंडकारण्य” रखता था। हिंसक आसुरी शक्तियों के उन्मुक्त विचरण के लिए। अब आप आसानी से समझ सकते हैं कि जब असली रामराज्य इस संकट से अछूता नहीं था, तो नक़ली की तो बिसात ही क्या है। मान सकते हैं कि तब के “मायावी मारीच” ही अब उस “मायावी लोक” में नया रूप धारण कर पैदा हो रहे हैं, जिसे “सोशल मीडिया” कहा जाता है। “अनसोशल एक्टीविटीज़” की भरमार के बाद भी। यह सब कुछ साफ है, मात्र संकेत नहीं।
ऐसे में क्या यह चिंतनीय नहीं कि किसी को भी कई सारे एकाउंट बना कर देश दुनिया में वायरल करने की खुली छूट बिना किसी जवाबदेही के दे दी जाए? फिर चाहे उसके द्वारा बेछूट “शूट” की गई विजुअल इंफॉर्मेशन किसी के लिए देश में देश के खिलाफ़ हथियार बने या विदेश में। भारत विरोधी एजेंडा या मूवमेंट चलाने के लिए। सामरिक व सामयिक महत्व के संवेदनशील स्थलों से धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरों तक की मनमाने ढंग से वीडियोग्राफी देश के लिए कितनी घातक है, इससे तंत्र शायद ही अनभिज्ञ हो। इसके बाद भी दिन रात जारी यह “खुला खेल फर्रुखाबादी” किसलिए होने दिया जा रहा है, समझ से परे है। यह सवाल मानस में एक अरसे से उछल कूद मचा रहा था, जिसे दिल्ली विस्फोट के बाद जारी खुलासों ने और दम दे दी। इस आलेख को लिखने का मूड बना आज “इंस्टा” पर एक वीडियो को देख कर, जो किसी इन्फ्ल्यूएंजर की दबंग घुसपैठ का पुख़्ता सुबूत था। इस वीडियो में यूट्यूबर ने अपने लाखों फॉलोअर्स सहित करोड़ों वींवर्स को जयपुर की शान “हवा महल” के चप्पे चप्पे की जानकारी दृश्यों के साथ देते हुए कड़ी सुरक्षा व सख़्त निगरानी के सारे दावों की हवा निकाल दी।
देश के अभेद्य किलों व संरक्षित स्मारकों से लेकर ऐतिहासिक मकबरों तक में इस तरह के बेज़ा प्रयास आए दिन देस की एकता, अखंडता व सद्भाव परम्परा के लिए जी का जंजाल साबित हो रहे हैं, पर सरकार है कि संज्ञान लेने तक को तैयार नहीं। आज जब हम ख़ुद इस तरह की जानकारी अपार लोकप्रियता व अथाह धन के लालच में जग जाहिर कर रहे हैं, तो हमें क्या हक़ है “रैकी” के नाम पर चीखने चिल्लाने व आरोप लगाने का? क्या हमारी यह कारगुज़ारी हमें “जयचंद” या “मीर ज़ाफ़र” की क़तार में खड़ा नहीं करती? यदि “हां” तो क्या कर रही हैं वो संस्थाएं, जो देश की संप्रभुता पर आंच न आने देने के लिए ज़िम्मेदार हैं? वर्ष 1980 के दशक से आज तक घटित हर छोटी बड़ी साज़िश व शैतानी करतूत के लिए सिस्टम को दोषी ठहराने वाले उस सरकार को दोषी क्यों न मानें, जिसके हाथ सारी मशीनरी, सारे सिस्टम का रिमोट है?
तमाम तरह के बाद, विवाद और फ़साद के नासूरी घावों से हर दिन, हर पल बिलबिलाते देश को “यूट्यूबर” के नाम पर अनगिनत “ट्यूमर” देने वाले सिस्टम के “ह्यूमर” को आख़िर हुआ क्या है, जो हर “रयूमर” की चिंगारी के पीछे फूंकनी लेकर खड़े कथित “यूट्यूबर” को बिना किसी नियम कायदे के निजी फायदे के मालपुए तलने व देश और विधान की छाती पर मूंग दलने की खुली छूट दे रहा है। कल तक टखनों से घुटनों व घुटनों से कमर तक आने वाला पानी अब कंधे पार कर सिर तक आने को तैयार है। ऐसे विकृत माहौल में बरती जा रही घोर लापरवाही देश को कभी भी दावानल बना सकती है। यह बात सरकार व उसकी जय जयकार में जी जान से जुटे हर एक नागरिक को पूछने का अधिकार है। विशेष रूप से हर उस नागरिक को, जिसे अपने व अपनों सहित अपने देश ब परिवेश के कल से सच्चा प्यार है। छोटे छोटे मसलों पर बड़े बड़े क़ानून बनाने और थोपने वाले तंत्र के सिद्ध तांत्रिकों को देश के तंत्रिका तंत्र में रक्त के साथ बहते षड्यंत्र का समूल नाश करने के लिए जायज़ की आड़ में नाजायज़ खेल को अविलंब रोकना पड़ेगा। अन्यथा “जेनजी” के नाम पर नौसिखिया को उकसाने व भड़काने वाले तो अपने काम को अंजाम देने में लगे ही हैं, जिनकी मंशा हिंदुस्तान को नेपाल, श्रीलंका व बांग्लादेश बनाने से अधिक कुछ नहीं। भगवान भला करे।।
संपादक
न्यूज़&व्यूज
श्योपुर (मप्र)