तर्ज- एक हजारों में मेरी बहना है .
नयनों में बसता है ,बस तु ही मेरे श्याम
तू ही मेरा माझी, तू ही है मेरा धाम।
तेरा प्रेम मोहन है बस मेरा संसार ,
तू ही भरोसा मेरा, तू ही विश्वास है।
देखा तुझको जब से, मै सब कुछ गई भूल,
तेरे चरणों की ,कान्हा हूं मैं बस धूल हू।
मेरे मन के मंदिर में तेरी ही मूरत है
तेरे सिवा न भाये कोई और सुरत।
रूबी चेतन शुक्ला