कह प्यासा कविराय
एक कुंडलियां :-
अपने अपने दर्प से,घायल सकल जहान।
लखे न अवगुण स्वयं का, बनते फिरे महान।।
बनते फिरे महान, सफलता हाथ न आये।
तिल भर गुण का घूम, घमंडी शोर मचाये।।
कह प्यासा कविराय, दर्प से घायल सपने।
रहते सदा अपूर्ण,कभी ना होते अपने।।
— प्यासा