बाल कविता
धूर्त लोमड़ी
——————
देख मुर्गा पेड़ पर,
गई धूर्तता जाग।
पहुॅंची कुक्कुट के निकट,
लगी पेट में आग।।
कोई भी अब किसी की,
न ले सकता जान।
जंगल के कानून में,
आया नया विधान।।
मुर्गा बोला लोमड़ी,
मैं न हूॅं नादान।
मैंने तो न है सुना,
ऐसा कोई फरमान।।
कुछ कुत्ते हैं आ रहे,
इसी दिशा की ओर।
लगी भागने लोमड़ी,
सुनकर ऐसा शोर।।
डरने की है बात क्या,
फैलाओ अब प्यार।
बोली लगता उन्होंने,
पढ़ा नहीं अखबार।।
~राजकुमार पाल (राज) ✍🏻
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)