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14 Nov 2025 · 1 min read

बाल कविता

धूर्त लोमड़ी
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देख मुर्गा पेड़ पर,
गई धूर्तता जाग।
पहुॅंची कुक्कुट के निकट,
लगी पेट में आग।।

कोई भी अब किसी की,
न ले सकता जान।
जंगल के कानून में,
आया नया विधान।।

मुर्गा बोला लोमड़ी,
मैं न हूॅं नादान।
मैंने तो न है सुना,
ऐसा कोई फरमान।।

कुछ कुत्ते हैं आ रहे,
इसी दिशा की ओर।
लगी भागने लोमड़ी,
सुनकर ऐसा शोर।।

डरने की है बात क्या,
फैलाओ अब प्यार।
बोली लगता उन्होंने,
पढ़ा नहीं अखबार।।

~राजकुमार पाल (राज) ✍🏻
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)

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