चाँदनी बेलिबास होती है
चाँदनी बेलिबास होती है
रात तारों के पास सोती है
ज़िक्र जिसका कभी नहीं होता
बात अक्सर वो ख़ास होती है
जो समंदर को पार करता है
उसको इक बूँद ही डुबोती है
देखके राहगीर के छाले
रहगुजर ज़ार ज़ार रोती है
एक पल में जो ज़ख्म भरता है
एक सदी वो निशान ढोती है
रात जिसकी कटी ठिठुरते हुए
खेत में वो कपास बोती है
रात कहती नहीं शज़र से पर
अश्क से पत्तियाँ भिगोती है