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13 Nov 2025 · 1 min read

पनघट

रात अक्सर पनघट बनती है
दिन बनता है उपवन
बिखर जाता है आशियाना खुद का
पर दूसरों की बनते है हिम्मत

रातो के पनघट बनते है
सरिता के किराने सजतें है
हंसो की जोड़ी बनती है
फिर चिड़िया बन उड़ जाती है

उपवन की तिमिर को देखा है
रंगों को बदलते देखा है
यु आसमां ना छूटा इससे
यूँ जीवन भी तर जायेगा

सजता है सुन्दर आसिया
जब नन्हे नन्हे होते सब
बिखर जाता हैँ संसार
जब अंतिम सांसे होंगी हैँ

हिम्मत की क्या करिये बात
उदासी मे लिपटी उसकी सांस
नजरो से ना हिम्मत हैँ हटतीं
फिर दुवाये अब सफल हैँ रहती

दीपिका सराठे

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