पनघट
रात अक्सर पनघट बनती है
दिन बनता है उपवन
बिखर जाता है आशियाना खुद का
पर दूसरों की बनते है हिम्मत
रातो के पनघट बनते है
सरिता के किराने सजतें है
हंसो की जोड़ी बनती है
फिर चिड़िया बन उड़ जाती है
उपवन की तिमिर को देखा है
रंगों को बदलते देखा है
यु आसमां ना छूटा इससे
यूँ जीवन भी तर जायेगा
सजता है सुन्दर आसिया
जब नन्हे नन्हे होते सब
बिखर जाता हैँ संसार
जब अंतिम सांसे होंगी हैँ
हिम्मत की क्या करिये बात
उदासी मे लिपटी उसकी सांस
नजरो से ना हिम्मत हैँ हटतीं
फिर दुवाये अब सफल हैँ रहती
दीपिका सराठे