अब तो अंत करीब
अब तो अंत करीब
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1. अब पछताए होत क्या, अब तो अंत करीब।
करना था सो कर लिया, बदला नहीं नसीब।।
2. पलते जिस वातावरण, वैसी पड़ती नींव।
कोई अपने कर्म से ,बनता धनी गरीब।।
3. माया ममता फेर में, पड़ा यहाँ हर जीव।
सत्य राह पे जो चले, चढ़ता वहीं सलीब।।
__ अशोक झा ‘दुलार’
मधुबनी (बिहार)
“रचना स्व-रचित एवं मौलिक है/”