इ मेल
सुना हुआ था,
मेल फिमेल,
पर नहीं जानता,
था मै इ मेल,
पहली बार सुना जब मैंने,
लगा भाई इनके क्या कहने,
मैं तो अपनी फरियाद बता रहा था,
वो मुझसे यह कह रहा था,
इतनी दूर क्यों चले आते हो,
वहीं कहीं से इ मेल क्यों नहीं भिजवाते हो,
आकर अपना पैसा गंवाते हो,
यहाँ आकर मेरा समय गंवाते हो,
अरे भाई डीजिटल का जमाना है,
फिर छोटी मोटी बातों को लेकर क्यों आना है,
घर पर बैठे इ मेल किया करो,
यहाँ आकर पैसा और समय मत जाया किया करो,
मैं अनमने से मन से बाहर आया,
सिर पर अपने हाथ फिराया,
आ गया ये कैसा जमाना,
अपनी फरियाद को है इ मेल कराना,
कैसे कहता मै नहीं जानता,
कोई कैसे सच इसे मानता,
स्मार्ट फोन जो हाथ लिए था,
जिसमें डाटा वाटा भरा हुआ था,
लौट के बुद्धू घर को आया,
घर पर आकर फोन उठाया,
और लगा उसे कोसने,
मेल फिमेल और इ मेल बोलने,
इतने मे कोई पास से निकला,
मुझे बडबडाते हुए लगा बोलने,
फिर आकर मुझसे वह बतियाया,
पास बैठ कर मुझे समझाया,
नये दौर का यह युग कलयुग है,
मेल फिमेल तक नहीं को रुकना है,
यहाँ इ मेल की नयी दुनिया में,
बस एक टुक टुक सा करना है l