न कहूं कुछ, न सुनू कुछ, मैं बस खामोश रहूं।
न कहूं कुछ, न सुनू कुछ, मैं बस खामोश रहूं।
मेरे लफ्ज़ ही मानो, मैरी तौहीन करते हैंं।
अल्फ़ाज़ औरो के, मानो तंज कसते है।
कभी हारा नहीं, अब थक सा गया हूं।
सांस जिंदा है कहीं, जहन में मर सा गया हूं।
तौहीन हर लफ्ज़ की, जब भी याद आती है।
अहसास होता है, ये याद दिलाती है।
मैं अकेला खड़ा था, भीड़ में बुतरपरस्तो की।
इस कदर टूटा हूं कि, फिर जुड़ू मुमकिन नहीं।
न कहूं कुछ, न सुनू कुछ, मैं बस खामोश रहूं।
@श्याम सांवरा…