“हुनूज़ दिल्ली दूर अस्त” पढ़ते थे कभी किताबों में ,
“हुनूज़ दिल्ली दूर अस्त” पढ़ते थे कभी किताबों में ,
पर आज जब फिर एक बार ,
दिल्ली धमाके से दहली,
दहल के चूर चूर होकर बिखरी,
तब महसूस हुआ ,
की दिल्ली अब दूर नहीं ,आतंक का मंजर फैलाने में ,
हैवानियत के दरिंदों ,नाजायज़ आतंकियों के इरादों में ,
इरादें ऐसे,जिससे हर कोई यहाँ ख़ौफ़ के साये में ,
बारूद फिर घुला दिल्ली की फ़िज़ाओं में ,
अस्मिता हुई दाग दाग , भारत हुआ फिर से बदनाम ,
और देख यह शौक,कली खिली पड़ौस के बाड़ों ( पाकिस्तान) में ,
मची धमाचौकड़ी सत्ता के गलियारों में ,
एक को गिराने हर कोई लगा देश की उड़ाने में ,
वक्त बुरा है ,जरा संभलना होगा इस खूनी शोर शराबें में ,
यह वक्त भी गुज़र जाएगा , एक रहना होगा इस बुरे ख़ौफ़ के साये में ।”
नीरज कुमार सोनी
“जय श्री महाकाल”