माटी के घड़े का अभिमान लिए फिरता है
माटी के घड़े का अभिमान लिए फिरता है
वो बड़ा नादान है मै मै के राग जपता है
सिर पर गुरूर का बोझा ,तन पर अहम का लेपन करता है
देखो अंतर्मन के दर्पण में कितना भद्दा लगता है
माटी के घड़े का अभिमान लिए फिरता है
वो बड़ा नादान है मै मै के राग जपता है
सिर पर गुरूर का बोझा ,तन पर अहम का लेपन करता है
देखो अंतर्मन के दर्पण में कितना भद्दा लगता है