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10 Nov 2025 · 1 min read

गिर्दाब ए इश्क

गिर्दाब-ए-इश्क में डूब गए थे हम,
न किनारा मिला ,न विसाल ए सनम।

जिंदगी ने ढेरों अफ़साने हमें सुनाए
हर मोड़ पर दे गयी नये नये ग़म।

अब तो जीने की तमन्ना ही नहीं बाकी
जब से बिछड़े है हमसे हमदम ।

इश्क़ की राह पर चलना नहीं आसां
कदम कदम पर मिलते रहे मातम।

इज्तिराब ए शौक़ न पूछिए हम से
भुलाए इश्क़ में हमने दो आलम।

सुरिंदर कौर

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