गिर्दाब ए इश्क
गिर्दाब-ए-इश्क में डूब गए थे हम,
न किनारा मिला ,न विसाल ए सनम।
जिंदगी ने ढेरों अफ़साने हमें सुनाए
हर मोड़ पर दे गयी नये नये ग़म।
अब तो जीने की तमन्ना ही नहीं बाकी
जब से बिछड़े है हमसे हमदम ।
इश्क़ की राह पर चलना नहीं आसां
कदम कदम पर मिलते रहे मातम।
इज्तिराब ए शौक़ न पूछिए हम से
भुलाए इश्क़ में हमने दो आलम।
सुरिंदर कौर