ग़ज़ल।
नफा को देखकर जो लोग अपने साथ आते है,
ख़सारा में वही अक्सर अकेला छोड़ जाते हैं।
सफर में काफिला होता है पूरा साथ चलने को,
जो मंजिल हाथ आए तो मुसाफिर छूट जाते हैं।
जो पूरा दिन बिताते है मेरी यादों की सलवट में,
हम उनको याद आएं तो वो हमसे रूठ जाते हैं।
उघारे तन की पीड़ा को ये शाही लोग क्या जानें?
की रोटी भर कमाने में सहारे छूट जाते हैं।
“अभीमुख” जिनकी चाहत पे भरोसा रखते आए हैं,
वही अक्सर हमारे दिल में चाकू घोप जाते हैं।
अभिषेक सोनी “अभिमुख”
ललितपुर, उत्तर–प्रदेश