हमनवां
हम_नवा
कोई हमनवां है जीवन पथ का,कोई हमनवां है सफर का।
सबसे भिन्न, सबसे प्यारा,है सफर साहित्य जगत का ।
यहां आकर अजनबी भी, हमनवां बन जाते है।
कभी करते है उत्साह वर्धन,कभी त्रुटियों से अवगत कराते हैं।
अमीर गरीब का भेद मिटाकर,संग में मुस्कुराते है।
खिल उठती है संस्कृति हमारी,जब दो साहित्य प्रेमी महफिल सजाते है।
भावनाओं की सरिता ,शब्दो में बह जाती है।
तुकबंदी विचारों की ,रिश्तों में घुल जाती है।
व्यक्तित्व की एक झलक ,शब्दो में दर्पण सी दिखती हैं।
आचरण और सदाचार की गहराई भावों में दिखती है।
ठौर नहीं है साहित्य जगत का,ये तो निर्मल गंग की धार है।
निकलती है लेखक के हृदय से, प्रवाह पाठक के हृदय भीतर है ।
******
किसी ने कहा था कि जब कोई शीर्षक नहीं होता है तो काव्य रचना या लेख लिखने में ठहराव आ जाता है पर मुझे लगता है कि अगर मन में भावनाओं का समावेश और लिखने की प्रबल इच्छा हो तो आपकी भावनाएं स्वयं शीर्षक तक पहुंच जाती है। सफर कुछ से शुरू हुआ है और बहुत कुछ तक के मध्य है बात रहे समय की तो आज के समय में भाव हर पल आपके साथ है और मोबाइल पास है बस लिखते रहिए अपने भावो को एक नया आयाम देने के लिए ,तो कभी खुद का मन हल्का करने के लिए,कभी दूसरों की पीड़ा को उजागर करने के लिए ,तो कभी कल्पनाओं के सागर में डूबकर कुछ मोती से ख्वाब ढूंढ लाने के लिए,हर एक व्यक्ति के पास एक ऐसी कला या कार्य होना चाहिए जिससे उसके अंतरमन को खुशी मिले,और मेरे पास तो दो दो कार्य है , हा कभी कभी कर्तव्य पथ पर निराश हो जाती हु क्यूंकि मनुष्य हु पर उससे खुशियां और सुकून भी बटोरती हु और फिर मेरी एक सखी आजकल मेरी कलम भी तो है जो मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ती है जो हर पल साथ होती है,प्रसन्नता में ,दुख में ,कल्पना में उदासी में ,जो मेरे मौन को भी उजागर करतीं है,जो भीतर के ज्वालामुखी को भी बाहर निकालती है,और प्रीत,सहानुभूति को भी ,जब हराने लगूं तो किसी लेखक का लेख या काव्य रचना मुझे एक मित्र की तरह सहारा देकर फिर से उत्साहित करती है तो ये कह सकते है कि साहित्य हमारे जीवन का एक अच्छा और सच्चा हमनवां और हमसफर है।
निरंजना डांगे
बैतूल मध्यप्रदेश