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5 Nov 2025 · 1 min read

यदि रुकी नहीं बरसात

यदि रुकी नहीं बरसात

इंद्रदेव के कोप से,डूब गए सब धान।
देख फसल की दुर्दशा, क्रन्दन करें किसान।।
क्रन्दन करें किसान,निरख खेतों की हालत।
गिरी गजब की मेह,शीश पर बनकर आफत।
मुश्किल में हैं प्राण,बारिश रोको भूदेव।
अरज करो स्वीकार, भुवनेश्वर इंद्रदेव।।

रुकी नहीं बरसात यदि, फसलें होंगी नष्ट।
धरती के हर जीव को,होगा भीषण कष्ट।।
होगा भीषण कष्ट, रहेंगे बच्चे भूखे।
गिर जाएगी गाज, पड़ेंगे घर में सूखे।
क्रय करने की नाथ,अन्न न मेरी औकात।
गिर जाएंगे गेह,यदि रुकी नहीं बरसात।।

सृष्टि सकल जल धार से,हुई बहुत बेहाल।
व्याकुल हो करके कृषक,बजा रहे हैं गाल।।
बजा रहे हैं गाल,दुखी सब नर नारी हैं।
डूब गए सब खेत , नष्ट फसलें सारी हैं।
विकट मूसलाधार,हुई अनवरत जल वृष्टि।
भीषण जल की धार, डूब गई सारी सृष्टि।।

स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

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