चमचासन (एक आधुनिक व्यंग्य कविता)
भारत के दो योग प्रसिद्ध,
प्रथम “सूर्य नमस्कारासन” है।,
आधुनिक युग का चमत्कार
अनिवार्य दूसरा “चमचासन” है॥
कुर्सी के नीचे आजकल,
एक नया सिंहासन आलीशान है।
जब ऊपर बैठे नेता जी,
नीचे चमचा जी विराजमान है॥
जो बोले “वाह गुरु!”,
वही आजकल बनता खास है।
सच्चाई जो कह दे जरा,
उस पर हो जाता अविश्वास है॥
दफ्तर में भी नियम यही,
बॉस महान, बाकी गुमनाम है।
फाइल चले वही आगे,
जिस पर सर जी का नाम है॥
कवि, चिंतक, या पत्रकार—
सबने सच्चा ज्ञान कमाया है।,
कभी कलम, कभी जुबान,
बेंचकर, पदक नवीन पाया है॥
अब योग नहीं, ध्यान नहीं,
सब करते “सिर हिलासन” है।
कुर्सी के चक्कर में लोग,
करें हर दिन “चमचासन” है॥
ये आसन बड़ा लचीला है,
कभी झुकना, कभी मुस्काना है।
फोटो में पीछे रहकर भी,
सदैव अख़बार में छा जाना है॥
जो इसमें पारंगत हो जाए,
उसका जीवन सुखमय होता है।
ना रुके प्रमोशन, ना इनाम —
हर मौसम में वह फल पाता है॥
भाइयों-बहनों दो तुम ध्यान,
राजनीति हो या दफ्तर दरबार।
सच बोलना अब भूल जाओ,
चमचासन है सबसे बड़ा अवतार॥
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