कि गुमशुदा हूँ मै
कहने को पास हैं सभी
मगर लगता है
सबसे जुदा हूँ मैं
भीड़ है अपनों की बहुत
मगर लगता है
कि गुमशुदा हूँ मैं
महफिल में भी
तन्हाई महसूस होती है
करता हूँ जतन लाख मगर
दिल की गहराई रोती है
मुस्कुराने की तो महज
झूठी एक अदा हूँ मैं
टूटे से ख्वाब
बिखरी सी जिंदगी है
जीने को जी रहा हूँ मगर
सांसें तो अब जमी हैं
शिकवा नहीं खुदा से
खुदाई पे फिदा हूँ मैं
“V9द” कहो
कौन किसका कहाँ है
समझाता हूँ खुद को मगर
ये समझता ही कहाँ है
चिराग जिद्दी हूँ जैसे
न बुझाए बुझा हूँ मैं
स्वरचित
V9द चौहान