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4 Nov 2025 · 4 min read

अंतरराष्ट्रीय बाल व्यास श्वेतिमा माधव प्रिया — बालगीत

अंतरराष्ट्रीय बाल व्यास श्वेतिमा माधव प्रिया — बालगीत से ब्रह्मज्ञान तक का अद्भुत सफर

रुद्रपुर (देवरिया)।
जब पंडाल में उनका मधुर स्वर गूंजता है, तो न केवल बच्चे बल्कि वृद्ध भी उसी शांत और श्रद्धास्पद ध्यान में डूब जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय बाल व्यास के उपाधि से विभूषित श्वेतिमा माधव प्रिया आज श्रीमद्भागवत की सबसे युवा और प्रभावशाली कथावाचिकाओं में से एक बन चुकी हैं। उनके जीवन और कर्म की कहानी साधारण नहीं — यह एक सतत अभ्यास, पारिवारिक मार्गदर्शन और आध्यात्मिक अभिरुचि का परिणाम है।

प्रारंभिक जीवन और प्रेरणा

श्वेतिमा का जन्म और बचपन आध्यात्मिक माहौल में बीता। बचपन से ही उन्हें भक्ति-गीत, शास्त्रीय कथाएँ और धार्मिक ग्रंथों का परिचय मिला। जल्द ही उनकी स्पष्ट और मीठी आवाज़ ने परिवार और समुदाय का ध्यान खींचा। छोटी उम्र में ही उन्होंने श्रीमद्भागवत के छोटे-छोटे प्रसंगों को इतनी भावनात्मक गहराई से प्रस्तुत करना शुरू कर दिया कि लोगों को आश्चर्य होता। इन्हीं प्रस्तुतियों ने उन्हें ‘बाल व्यास’ की उपाधि दिलाई — और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उनका नाम फैलने लगा।

प्रशिक्षण, शिक्षा और शैली

श्वेतिमा को कथा वाचन के पारंपरिक शिल्प—स्वराभ्यास, शब्द-संदेश की समझ, भावान्वेषण और श्रोताओं से संवाद—पर विस्तृत प्रशिक्षण मिला। उनका प्रशिक्षण केवल भाषाई नहीं; वे भाव-विभोर करना जानती हैं — चरित्रों की आंतरिक पीड़ा, बाल-लीलाओं की चंचलता और भक्तों की मिलन-भावना वे सहजता से उभार देती हैं। उनका पाठ सरल होने के साथ-साथ गहन अर्थों से परिपूर्ण रहता है, जो श्रोताओं को आध्यात्मिक चिंतन की ओर मोड़ देता है।

प्रमुख उपलब्धियाँ और अंतरराष्ट्रीय पहचान

विश्व की सबसे कम आयु में श्रीमद्भागवत कथा का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वाचन।

अनेक मंदिरों, धार्मिक और सांस्कृतिक मंचों पर आमंत्रण और प्रसंशा।

समाजिक व शैक्षिक संस्थानों में बच्चों एवं युवाओं के लिए अध्यात्मिक प्रेरणा सत्र।
(श्वेतिमा के लिए और अधिक प्रमाण—प्रेस कवरेज, टीवी फीचर और अन्तरराष्ट्रीय निमंत्रण—समय के साथ बढ़ते गए हैं।)

चरित्र-निर्माण व उद्देश्य

श्वेतिमा का उद्देश्य सिर्फ कथा-वाचन नहीं; वे युवा पीढ़ी में नैतिकता, निस्वार्थता और परिच्छन्न प्रेम का बीज बोना चाहती हैं। उनके विचारों में कथा माध्यम से सामाजिक चेतना, पर्यावरण संरक्षण और सर्वधर्म-सद्भाव का संदेश भी प्रमुख है। उनके परिवार ने उन्हें इसी दृष्टि से मार्गदर्शित किया और स्थानीय-अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर उनका प्रोत्साहन किया।

पंचम दिवस — कथा व गोवर्धन पूजा: जीवंत वर्णन और प्रकृति संदेश

पंचम दिवस की कथा में श्वेतिमा ने पूतना उद्धार के प्रसंग में दिखाया कि कैसे सच्ची भक्ति और दैवीय कृपा भ्रामक भय और छल को परास्त कर देती है। श्रीकृष्ण नामकरण के प्रसंग में उन्होंने बताया कि नामकरण केवल शब्द नहीं, बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक दायित्व का आरम्भ है। माखन चोरी लीला में बालकृष्ण की चंचलता के साथ-साथ निस्वार्थ प्रेम की झलक दी — कैसे बाल रूप में भी भगवान ने प्रेम के द्वारा संसार को मोहित किया।

कथा का प्रमुख आकर्षण गोवर्धन पूजा रहा। श्वेतिमा ने विस्तार से बताया कि जब इंद्र के क्रोध से ब्रजवासी डर गए थे, तब छोटे कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर सबकी रक्षा की — यह घटना केवल दिव्यता ही नहीं, बल्कि प्रकृति के संरक्षण का प्रतीक भी है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा — “गोवर्धन पूजा धरती-मां के प्रति हमारा आभार है; यह हमें पर्यावरण का सम्मान और संरक्षण सिखाती है।” इस संदेश पर सभी ने जोरदार सहमति व्यक्त की और वातावरण में गंभीर परंतु उत्साही प्रतिबद्धता दिखाई दी।

कथा के दौरान पंडाल “गोवर्धन गिरिधारी लाल की जय” और “नरसिंह भगवान की जय” के उद्घोषों से गुंजायमान रहा। भक्तों ने नृत्य, मंगल-गीत और पुष्पवर्षा से कार्यक्रम को और भी भव्य बनाया।

उपस्थित प्रमुख यजमान व श्रद्धालु (नाम सहित)

कार्यक्रम में प्रमुख रूप से उपस्थित रहे — प्रभु नाथ पांडेय, संत डॉ. सौरभ पांडेय, आचार्य गौरव पांडेय, आचार्य विशाल शुक्ला, अनिल पांडेय, सुनील पांडेय, सर्वेश्वर पांडेय, ओशंक पांडेय, धर्मेश पांडेय, शशांक पांडेय, विनय पांडेय, चंद्र प्रकाश पांडेय, दीना नाथ पांडेय, गुरु, एवं पंकज राय। इनके साथ सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित थे जिन्होंने कथा का रसपान कर आत्मिक शांति का अनुभव किया।

भावी योजनाएँ और संदेश

श्वेतिमा के मार्गदर्शक और परिवार (विशेषकर उनके पिता डॉ. सौरभ पांडेय) उनके सतत प्रशिक्षण और सामाजिक-धार्मिक प्रोजेक्ट्स के लिए समर्पित रहे हैं। श्वेतिमा का लक्ष्य न केवल कथावाचन को उत्कृष्ट बनाना है बल्कि युवा पीढ़ी में आध्यात्मिक-नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देना और प्रकृति के संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाना भी है। वे भविष्य में कथानक अनुवाद, डिजिटल पाठ्यक्रम और अन्तरराष्ट्रीय समाजों में आध्यात्मिक संवाद स्थापित करने की योजना बना रही हैं।

श्वेतिमा माधव प्रिया की यह यात्रा दर्शाती है कि छोटी उम्र में भी अगर बुद्धि, भाव, और प्रेरणा एकत्रित हो तो व्यक्ति समाज और संस्कृति पर गहरा प्रभाव छोड़ सकता है। रुद्रपुर का पंडाल आज उसी प्रभाव का साक्षी रहा — जहाँ एक बालक ने कथा के माध्यम से भक्ति, प्रेम और प्रकृति संरक्षण का अमूल्य संदेश दिया।

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