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30 Oct 2025 · 1 min read

.....दिल की खिड़की...

…..दिल की खिड़की…
दिल की खिड़की भी मैंने खुली छोड़ी थी,
मन में थी आस — आप आ जाएँगे।
हवा बैरन ने जब-जब भी छेड़ा मुझे,
हर खटक पर लगा — आप हैं आ गए।
दिल की देहरी पे मैंने जलाए दिए,
द्वार तक आए ,पर घर वो आए नही।
रात भी ढल गई, दीए बुझ भी गए,
और इंतज़ार में … मैं अब भी वहीं पर खड़ी
रूबी चेतन शुक्ला

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