दोहा चौका. . . . विविध
दोहा चौका. . . . विविध
धन- वैभव सब कुछ मिला, साथ मिला अभिमान ।
निगल गई इन्सानियत, आखिर झूठी शान ।।
किसको आखिर भीड़ में, ढूँढ रहा इंसान ।
अब जमीर किसमें बचा , किसमें अब ईमान ।।
रुसवा हैं सच्चाइयाँ, किस पर करें यकीन ।
धोखे इस संसार में, होते बड़े हसीन ।।
आज स्वयं में खो गया, अभिमानी इंसान ।
टूटे दर्पण सी हुई, अब उसकी पहचान ।।
सुशील सरना / 28-10-25