अहसान उसका क्यों भूल गए हो तुम
अहसान उसका क्यों भूल गए हो तुम, अहसान उसका क्यों भूल गए हो तुम।
लहू से सींचा है जिसने यह चमन, गुलजार हो जिसमें तुम।।
अहसान उसका क्यों भूल गए—————–।।
सोचता हूँ और सोचकर ही, सिहर जाता है मेरा मन।
कितना बहा होगा उसका लहू , क्या कभी ऐसा सोचते हो तुम।।
अहसान उसका क्यों भूल गए——————।।
आँखों से आँसू बह निकलते हैं, जब आज उसको मैं देखता हूँ।
जर्जर हो चुकी है उसकी काया, मगर कितने बेखबर हो तुम।।
अहसान उसका क्यों भूल गए——————।।
उसने पिलाया अपना लहू , तुम्हारी हलक मिटाने को।
कितने बेशर्मी है उसको पानी तक, नहीं पिला पाते हो तुम।।
अहसान उसका क्यों भूल गए——————-।।
फिर भी महान है वह कि दुहा तुम्हारे लिए यही करता है।
मैं तो मेहमान हूँ कुछ दिनों का, गुलजार हमेशा रहो तुम।।
अहसान उसका क्यों भूल गए——————।।
धिक्कार है तुम्हारा जीना, औकात तुम अपनी भूल गए हो।
जिसने दिया जीवन तुमको, बदनाम उसी को करते हो तुम।।
अहसान उसका क्यों भूल गए——————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला-बारां(राजस्थान)