प्रेमपाती -2
सखियां लिख रही है, कृष्ण को, प्रेम पाती।
द्वारिका के धीश आओ, कृष्ण को दिखाने।।
अखियाँ भी सूख गई, बाट अब निहारते,
गोपियो के प्राण कृष्ण, आओ तुम बचाने ।।
कृष्ण भी लिख रहे, राधिका को प्रेमपाती।
तुम बिना लागे मुझे, द्वारिका अनजाने।
यमुना के तट गोपी, वो ग्वालों की टोली।
आती हो तुम अब भी, स्वप्न में सहलाने।।
है कर्मक्षेत्र भी यहाँ, पर दिल में गोकुल।
पाओगी तुम मुझको, सखियो सिरहाने।।
प्रेम के है वश कृष्ण, कभी माया को नचाते।
प्रेम की अथाह शक्ति, लगी कृष्ण नचाने।।
राधे राधे
(कवि -डॉ शिव लहरी)