कानों में ज़हर
ज़हर कानों में किसी ने जो घोला
ऐसा क्या है सरेआम नहीं रे बोला।
कोशिश ऐसे ही होवे ,घर तोड़ने की
क्यूं न करें जुगत , रिश्ता जोड़ने की।
बसा बसाया घर ,हो जाए है बर्बाद
ज़रा चुगलियों से ,रहो तुम आजाद
खाने में घोलो ज़हर ,तो सब मर जाए
ज़हर कान में घोलो ,घर नर्क बनाए।
सुरिंदर कौर