राह देखते हुए बरसों बीत गये l
राह देखते हुए बरसों बीत गये l
हमारे और तुम्हारे दरमियाँ
जो दूरी रही वो पाई के मान
की तरह स्थिर रही l
तुम्हारे साथ बिताए हर लम्हें को
Xyz मान मैंने परिणाम प्राप्त करने की कोशिश की l
पर तुम हमेशा त्रिकोणमिति जैसे
मुश्किल पेश आते रहे l
काश कभी तुम परिधि और विकर्ण ज्ञात करने जितना आसान होते तो
ये राह नज़दीक होती और पाई का मान भी किसी अंक में तब्दील हो जाता।
निवेदिता रश्मि