#भैयादूज#
शीर्षक: भैया दूज
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निर्मल कल कल छल छल बहती, ज्यों यमुना की धार।
भैया दूज समाहित पावन, बहना तेरा प्यार।।
सजा आरती थाल तिलक से, मन में लिए उचाट।
कब आएँगे भैया घर को, बहना ताके बाट।।
नर नारी संबंध अनोखे, कितने इनके रूप।
भाई-बहना निर्मल नाता, सबसे है अपरूप।।
एक यहीं रिश्ता है ऐसा, अब तक हमको गर्व।
बस बंधन नि:स्वार्थ प्रेम का, ऐसा है यह पर्व।।
राई जैसा दुख भाई का, लगता जिसे पहाड़।
भाई के हित सब सहने को, रहे बहन तैयार।।
__ अशोक झा ‘दुलार’
मधुबनी (बिहार)