बघेली हास्य कविता --- कवि कार्तिकेय गर्ग
पैतीस चालीस पार पहुंच गे कजहा न एकव आमय,
अधबुढ़ अधबुढ़ परेँ काज क पेटे के दुख कहाँ धरय।
बिटिया केही काज के खातिर सब नउकरिहय लड़िका हेरा,
अतने म छटरि गे ईँ अधबुढ़बे लड़िका एहिन से परा हय एनखर डेरा।
कइसव केही जो भबव भ काज पकत पकत सब जीगर,
त अत्तेव मा जो करिन जक्क बिक्क घरे म त बेलना मारय मेहर।
कहय सेम्पू लाबा तेलव लाबा लय आबा साबुन सोढ़ा,
मना जो करबे एकव अक्षर त दय मारब मूड़े मा पीड़ा।
✍️कवि कार्तिकेय गर्ग