#आयोजन
#आयोजन
“आप लोगों ने कुछ सुना है क्या??”
दीवाली मिलन के लिए सजी अदब की बज़्म
श्योपुर।
“विविधा सृजन संस्थान” के बैनर तले “दीवाली मिलन” बीती शाम अदब की बज़्म के तौर पर संपन्न हुआ। दीवाली की मिठास से भरी इस महफ़िल को अदबनवाजों ने अपने क़लाम से सजाया। शुरुआत आमंत्रित क़लमकारों के इस्तकबाल के साथ हुई। इसके बाद उन्होंने अपने बेहतरीन क़लाम पेश किए।
बज़्म का आगाज़ नौजवान शायर अनवर ग़ाफ़िल ने मौजूदा हालात पर कुछ इस तरह तंज़ किया…
“ये दिये जो झोंपड़ी में रात जलते रह गए।
वो अमीरे शहर की आंखों को खलते रह गए।।”
निज़ामत कर रहे शायर डॉ. अय्यूब “गाज़ी” ने कुछ इस अंदाज़ में सवाल उठाया…
“सबक़ ले मुझसे की ईमान की बुनियाद है नीयत
अगर जो दिल नहीं झुकता तो फिर सर का झुकाना क्या??”
शायर डॉ. अशफ़ाक़ “अर्शी” ने “उर्दू” की शान में नज़्म से पहले गज़ल के जरिए अपने एहसास पेश किए…
“खूबी कहें कि इसको करामात हम कहें?
क़ातिल ने बार कर के तड़पने नहीं दिया।।”
आयोजक संस्थान की नुमाइंदगी करते हुए प्रणय प्रभात ने काली रात के खिलाफ़ दिये के संघर्ष को कुछ यूं सलाम किया…
“रात के काले अंधियारे से लोहा लेगा एक दिया।
शाम ढले तक और ज़रा इस सूरज को इतराने दो।।”
शायर मो. सईद “चराग़” ने तंज़िया क़लाम के बाद मुहब्बत का फ़लसफ़ा कुछ ऐसे समझाता…
“इश्क़ क्या चीज़ है तू इश्क़ को समझा ही नहीं।
इश्क़ उस रब से मिलाता है तुझे इश्क़ तो हो।।”
ख़ास मेहमान के तौर पर बुजुर्ग शायर हमीद बालापुरी ने दिलकश अंदाज़ में बेहतरीन ग़ज़लों से समाँ बांधा। तरन्नुम में पेश ग़ज़ल की एक बानगी…
“हमने तो उनसे कुछ कहा ही नहीं।
आप लोगों ने कुछ सुना है क्या??”
सदारत करते हुए ख़बरनवीस इंसाफ़ अहमद कुरैशी ने नशिस्त (गोष्ठी) की इस पहल की तारीफ़ करते हुए सभी को दीवाली की मुबारकबाद पेश की। उन्होंने कहा कि “हथियार कितना ही अच्छा हो, अगर चलता नहीं है तो उसमें ज़ंग लग जाता है। यही बात कवियों और शायरों पर भी लागू होती है। उनके क़लाम को धार देने के लिए इस तरह के आयोजन होते रहने चाहिए।” आख़िर में सभी ने आपस में गले मिल कर एक दूसरे को दीवाली की दिली मुबारकबाद दी। इस दौरान एक दिलचस्प दौर लतीफ़ों का भी चला। कुल मिला कर आयोजन हर नज़रिए से बेमिसाल रहा, जिसने इस तरह के आयोजन के पुराने दौर को ताज़गी देने का काम किया।