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23 Oct 2025 · 1 min read

ग़ज़ल 2122 2122 2122

ग़ज़ल 2122 2122 2122

गो उजालों से भरा मेरा जहाँ है,
चांदनी से मेरा रिश्ता पर कहाँ है।

चांद भी नाराज़ है सदियों से मुझसे ,
यारों मेरा साथ पर अब आसमां है।

बारिशों से दोस्ती मैं कर चुका हूँ,
मेरी छत पे बादलों का इक मकाँ है।

मुश्क़िलों से लड़ना अब आता है मुझको,
मेरी यादों में समायी मेरी माँ है।

हम अकेलापन से अब भी जूझते हैं ,
दिखने में गो साथ अपने कारवां है।

जग से खाली हाथ जब जाना है हमको,
तुमको अपने धन का इतना क्यूं गुमां है।

शह्र में पैसा है तो रिश्ता है दानी,
गांव रिश्तों का मुकम्मल आशियां है ।

( डॉ संजय दानी दुर्ग सर्वाधिकार सुरक्षित )

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