सतनाम आन्दोलन और ब्रिटिश लेख
सतनाम आंदोलन के सम्बन्ध में ब्रिटिश गजेटियर एवं अंग्रेज विद्वानों ने निम्नानुसार लेख किया है :
1. बिलासपुर जिला का भू राजस्व बंदोबस्त प्रतिवेदन 1868 के अनुसार – “सतनाम आंदोलन 1820 और 1830 के मध्य हुआ। आधी सदी पुराना यह आंदोलन अभूतपूर्व था।”
2. ब्रिटिश भारत की जनगणना का ज्ञापन 1871-72 में लेख है – “सतनामी मध्य प्रांत का महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय सम्प्रदाय है। इसकी जनसंख्या 2,66,000 है। यह किसी देवी-देवता या उनकी मूर्तियों पर नहीं, सिर्फ सतनाम पर विश्वास करते हैं, जिसकी शिक्षा या संदेश सतनामियों के गुरु ने दिया है।”
3. प्रसिद्ध अंग्रेज विद्वान हिवेट के अनुसार – “गुरु घासीदास का सतनाम आंदोलन सन 1840 से 1850 के बीच अपनी चरम पर था। गुरु घासीदास के प्रभाव में आकर अनेक जातियाँ जिसमें मुख्यतः अहीर, तेली, रावत, मरार आदि सतनाम धर्म अपनाकर सतनामी बनने लगे थे। यही नहीं बहुत से सवर्ण भी घासीदास जी से दीक्षा लेकर सतनामी बन गए। घासीदास जी के जीवन में अभूतपूर्व घटना सन 1842 के तेलासी में हुए मतान्तरण समारोह था, जिसमें हजारों की संख्या में लोग सतनाम धर्म की दीक्षा लेकर अपने आप को सतनामी घोषित कर दिए।” जय सतनाम।
मेरी 67वीं कृति – “गुरु घासीदास और सतनाम आन्दोलन” से कुछ अंश।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
अमेरिकन एक्सीलेंट राइटर अवार्ड प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक