पढ़े - लिखें लोग
ज्यादा पढ़े -लिखे लोगों का दिमाग खराब होता हैं।
ज्यादा जिज्ञासा होती हैं,
बिना जाने कुछ मानते नहीं है,
सबके सामने सिर न झुकाते है, लेकिन वो सर झुकना जानते है।
वो प्रश्न उठाते हैं ज्ञान, बोध, कौशल पर भी,
अगर यह सब गलत है तो हा,
पढ़े- लिखे लोगों का दिमाग खराब होता है।
हर उस चीज में जिज्ञासा करते हैं जो लोग माने बैठें हैं,
प्रश्न खड़ा करते हैं हर वो चीज में जिसमें वो कर सकते हैं।
वो सोचने ज्यादा लगते हैं,
उसकी बुद्धि अहंकार की ग़ुलाम नहीं होती हैं।
समाज को वो पढ़ें लिखे रास न आयेगे जो उसी पर प्रश्न खड़ा करें,
समाज के पास प्रत्युत्तर है सिर्फ उनके जो उसे और विस्तार दे सके।
प्रश्न खड़ा किया समाज पर,
तब प्रतिउत्तर के बदले खड़ा हुआ समाज आप पर,
ज्यादा पढ़े लिखे लोग समाज को रास नहीं आते है।
वो प्रश्न उठाते है- जीवनसाथी, सही जीवन, अहंकार, अस्तित्व, बेचैनी, और सही गलत पर भी।
वो विवेकपूर्ण समानता देखते है और असमानता भी।
जीवन कैसा भी हो शांति, सत्य, चैन की खोज में निकलते है चाहे कुछ हो य न भी।
अगर
न पढ़ो, न जानो, न समझो जैसे हो बने रहो।
समाज के निर्माण को स्वीकार्य करो, न जानो खुद को न समाज को न सत्य को जैसे हो बने रहो।
न करो मान्यताओं का खंडन, न चुनो आजादी भी।
तुम समाज के स्वार्थों को पूरा करो और समाज तुम्हारे भी।
क्या तुम्हें ये स्वीकार्य है?
अगर नहीं तो पढ़ो, जानो, समझो।
जानो सही गलत का भेद,
जानो खुद के अज्ञान का भेद।
जियो खुद जैसा तुम चाहते हों,
सर झुके तो सिर्फ सत्य को,
खड़े रहो असत्य के खिलाफ।
जानो वो हर चीज जो मान्यता में खड़ी है।
जानो खुद के अस्तित्व को,
जितना जो कुछ जान सकते हो जानो।
मिल जाए पंचभूतों में तुम्हारा पंचभूत,
इससे पहले जितना जान सकते हो जानो।
अगर जानना गलत हैं,
तो हा पढ़े- लिखे लोगों का दिमाग खराब होता हैं।
हा जो ज्यादा पढ़ – लिख जाते हैं वो पागल हो जाते हैं।
पढ़े -लिखे लोग खुद को और समाज को सही राह ले जाते है।
~यथार्थ