तेरे बिन दिवाली
जहाँ नहीं संगम की सरिता,
वहाँ प्रीत क्या जागेगी।
जहाँ द्वंद्व उठते मन में,
वहाँ गीत क्या गूँजेगे।।
भाव विहीन अर्णव की लहरें,
विकृति द्वंद्व उठाती हैं।
अन्तस मन की उद्वेलित पीड़ा,
रह रह कर प्रश्न जगाती हैं ।।
क्या दीप जलाए सखी बताओ,
तेरे बिन जीवन अंधियारा हैं।।
जीवन पथ के सिंधु से तो,
आँखों का अश्रु खारा हैं।।
रही विडम्बना करनी का,
आक्षेप नहीं करने देती।।
अश्रु की धारा में बहती,
सापेक्ष नहीं तैरने देती।।
घर पर दीप जलाएं हैं,
पर हृदय ज्योति जलता हैं।।
क्या विह्वलता तुझे बताऊँ सखी,
तेरे बिन दिवाली खलता हैं।।