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18 Oct 2025 · 1 min read

ग़ज़ल

जिस रोज़ तेरे हाथ मे छाले न रहेंगे
छिन जाएगा सब कुछ, ये निवाले न रहेंगे

दिन वो भी कभी आएगा इकरोज़, फ़लक पर
सूरज तो रहेगा ये उजाले न रहेंगे

टूटेगीं कभी देखना जिन्दांँ की फ़सीलें
होठों पे हमेशा लगे ताले न रहेंगे

फिर चाँद कोई निकलेगा फिर होगा उजाला
फिर आसमाँ के रंग भी काले न रहेंगे

क्यों ज़ुल्म से हैबत से डराते हो इन्हें तुम
क्या होगा वतन में जो जियाले न रहेंगे

ये आग तास्सुब की अगर बुझ न सकी तो
रिश्तों के हमारे ये क़बाले न रहेंगे

अब चाहिए उनको भी करें हुस्न पे पर्दा
हम ही तो फ़क़त दिल को सम्भाले न रहेंगे

हर दौर में होगी न मुहब्बत की रसाई
हर दौर में ये चाहने वाले न रहेंगे

मिलते ही हमें वो भी बहक जाएंगे आसी
हम पा के उन्हें, ख़ुद को सम्भाले न रहेंगे
———————–
सरफ़राज़ अहमद आसी

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