ग़ज़ल
जिस रोज़ तेरे हाथ मे छाले न रहेंगे
छिन जाएगा सब कुछ, ये निवाले न रहेंगे
दिन वो भी कभी आएगा इकरोज़, फ़लक पर
सूरज तो रहेगा ये उजाले न रहेंगे
टूटेगीं कभी देखना जिन्दांँ की फ़सीलें
होठों पे हमेशा लगे ताले न रहेंगे
फिर चाँद कोई निकलेगा फिर होगा उजाला
फिर आसमाँ के रंग भी काले न रहेंगे
क्यों ज़ुल्म से हैबत से डराते हो इन्हें तुम
क्या होगा वतन में जो जियाले न रहेंगे
ये आग तास्सुब की अगर बुझ न सकी तो
रिश्तों के हमारे ये क़बाले न रहेंगे
अब चाहिए उनको भी करें हुस्न पे पर्दा
हम ही तो फ़क़त दिल को सम्भाले न रहेंगे
हर दौर में होगी न मुहब्बत की रसाई
हर दौर में ये चाहने वाले न रहेंगे
मिलते ही हमें वो भी बहक जाएंगे आसी
हम पा के उन्हें, ख़ुद को सम्भाले न रहेंगे
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सरफ़राज़ अहमद आसी