मेरे भीतर एक बसंत है
मेरे भीतर एक बसंत है,
अनाहत, अनवरत…
यह केवल ऋतुओं का फेर नहीं,
यह तुम्हारी उपस्थिति का संगीत है।
देखो, मेरी सूखी रगों में,
कैसे फूट पड़ी हैं कोमल कोंपलें,
जब से तुम्हारे प्रेम की पहली किरण,
स्पर्श कर गई इस बंजर भूमि को।
तुम हो वह मंद पवन,
जो चुपके से आती है,
और मेरे मन के ‘शीत’ को हर लेती है।
तुम्हारी यादें वे सुनहरे पराग कण,
जो बिखेरते हैं, एक मादक सुगंध
मेरे एकांत के आँगन में।
मेरा हृदय एक कमल सरोवर,
जिसमें तुम्हारी छवि,
वह पूर्ण चंद्रमा है,
जो हर रात खिलता है,
बिना किसी प्रतीक्षा के।
बाहर भले ही पतझड़ हो,
या घना कोहरा;
मेरे अंतःस्थल में,
सदैव गूँजता है चिड़ियों का कलरव।
हाँ, मेरे भीतर एक बसंत है,
जो तुम्हारी मुस्कान से,
पानी पाता है,
और तुम्हारे स्पर्श की ऊष्मा से,
हर दिन पल्लवित होता है।
यह बसंत चिरस्थायी है,
क्योंकि तुम इसका माली हो।
और मैं हूँ वह अमरबेल,
जो तुम्हारे ही सहारे,
जीवन पाती है।
© अमन कुमार होली