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18 Oct 2025 · 1 min read

रात-भर जलतीं रहेंगी बत्तियां

ग़ज़ल

रात-भर जलतीं रहेंगी बत्तियां
और वो तलती रहेगी मट्ठियां

लो नया त्यौहार फिर-से आ गया
मुक्ति फिर घर-घर करेगी भक्तियां

कट्टरों को चाहो तो कहलो जदीद
क्या अलग है बस जुदा हैं तख्तियां

चांद का मुंह क्या पता किस ओर है
बीच में कितनी हैं पड़ती रुढ़ियां

वो रवायत से बग़ावत कर तो दे
बीच में हैं थालियां और पूड़ियां

-संजय ग्रोवर

( तस्वीर: संजय ग्रोवर )

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