Nazm - उम्मीदें और उदासी
Nazm – उम्मीदें और उदासी
एक खिड़की है – जिसकी दूसरी तरफ है रोशनी,
ऐसी रोशनी, जो घर को रौशन करती है।
मगर इस तरफ – एक कमरा है, अंधेरे में डूबा हुआ।
हाँ, कभी-कभी आती है वहाँ भी रौशनी,
उस दूसरी तरफ से झाँकती हुई।
पर जब खिड़की बंद हो जाती है,
तो अंधेरा फैल जाता है हर कोने में।
इधर कुछ दीए हैं – जो घबराहट महसूस करते हैं,
फिर भी तलाशते हैं एक उम्मीद – एक रौशनी की।
मगर यहाँ रोशनाई इतनी आसान नहीं,
थोड़ी मुश्किल है, शायद उतनी
जितनी सूरज के लिए
दीवारों के उस पार आना।
क्यों नहीं आता वो सूरज?
आए न ज़रा खिड़की से,
छू ले इन छोटे दीयों को,
जो हैं उदास – मगर खास,क्योंकि यही दीए सँभाले हैं वो कमरा
जहाँ रहती हैं *उम्मीदें…
उदासियों के साथ।* – Raghu…171025🖊️